वीडियो जानकारी: 26.10.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ स्वधर्म क्या है?
~ परधर्म क्या है?
~ स्वभाव क्या है हमारा?
~ आज तक हम किन तीन ताकतों के प्रभाव में निर्णय लेते आ रहे हैं?
~ कर्म क्या है?
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
सुंदर रूप से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित होने पर भी निजधर्म श्रेष्ठतर है। अपने धर्म के पालन में मृत्यु भी कल्याणकारी है, दूसरों का धर्म भययुक्त या हानिकारक है।
श्रीमद भगवद्गीता (अध्याय ३ श्लोक ३५ )
संगीत: मिलिंद दाते
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